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Mein-Wo aur Metro

मैं-वो और मेट्रो...



मैं-वो और मेट्रो...
नबंवर महीने की जयपुर की वो गुनगुनाती और गुलाबी सी सुबह थी। और सुबह के लगभग 8 बज चुके थे। और अलार्म बार बार चीखकर अपना वक़्त बता रहा था। एक लड़का तकरीवन 24 -25 साल का, चेहरे पर एक अलग सी कशिश और ख़ामोशी लिए और वो लड़का जल्दी जल्दी अपने कॉलेज जाने के लिए तैयार होता है। और घर के नजदीक मेट्रो स्टेशन से, सुबह के 8:40 की मेट्रो पकड़ता है। काफी भीड़ और रोजमर्रा की तरह मेट्रो में, ऑफिस और कॉलेज जाने वालों की भीड़ में उसे भी जगह मिल जाती है। लड़के के बैग में हमेशा एक स्पाइरल डायरी हुआ करती थी। और इसी प्रकार एक छोटा सा सफर शुरू हो जाता है।,
...रोजाना की तरह रागिनी भी उसी रास्ते से मेट्रो पकड़ती है। जिसके चंचलपन, कॉलेज गोइंग गर्ल कि बजह से कॉलेज और घर में लोगों से घिरी रहती थी। उसकी आँखों में एक अजीब समुन्दर सी गहराई, शायद उसके शब्द बोल ही नहीं पाते होंगे। आँखें ही दिल की जुवां होंगी।
...हमेशा की तरह मेट्रो के अंदर जाने के बाद सीट के लिए जदो-जहद। और लड़के का सामना इत्तेफाकन रोज रागिनी से हुआ करता था। शायद ऊपर वाले को यही मजूर था। वो लड़का रागिनी की आँखों में देखता, और अपनी डायरी में कुछ लिखने की कोशिश करता। ये वो शिलशिला था। जो काफी दिनों से चल रहा था। और शायद इसकी खबर रागिनी को भी लग चुकी थी। मगर उसको लगता कि वो लड़का उसे घूर रहा है। शायद रागिनी उस लड़के के जज्बातों से अनजान थी। रागिनी जो एक MBA की छात्रा है। और पढाई में होशियार है। वो लड़का उसे क्यों देखता और उसे देखकर क्या लिखता। शायद रागिनी को इस बात की खबर नहीं थी। और इत्तेफ़ाक़ देखिये कि दोनों का डेस्टिनेशन स्टेशन एक ही था। जहाँ आकर दोनों अपनी-अपनी मंजिल की ओर निकल जाते। और इस पूरे सफर में यही शिलशिला जारी रहता। वो लड़का, उस लड़की को अजीब सी नजरों से देखता। और जब रागिनी की नजर उठती तो वो घबराहट से अपनी नज़र झुका लेता। और एक दिन इस शिलशिले को ख़त्म करने के इरादे से रागिनी ने उसको सबक सिखने का फैसला किया।
.....और फिर वो दिन भी आ गया जब रागिनी न उस लड़के को सबके सामने काफी बुरा भला कहा, लेकिन वो लड़का शांत रहकर चुपचाप सब कुछ सुनता रहा। एक लफ्ज़ भी उसने रागिनी को नहीं कहा। ...और घर लौटने के बाद रागिनी को अपनी ही बोली हुई किसी बात का बुरा लग रहा था। क्या रागिनी के मन में उस लड़के के लिए कुछ जज्बात बन रहे थे। या फिर जो कुछ उसने लड़के के साथ किया, वो बुरा लग रहा था? ...क्या हुआ था उसे, और क्या होने वाला था। वो इस बात से परेशान थी।
...और रागिनी, एक अजीब सी उलझन में फस गई थी। अगले दिन सोमबार की सुबह, रागिनी ने फिर से वही मेट्रो पकड़ी, सीट मिल जाने के बाद शनिवार को हुए उस बात को याद कर रही थी। और ये याद करते करते न जाने क्यों उसकी नजरें, उस लड़के को ढूंढ रहीथी। और साफ-साफ उसकी आँखों में उसको ढूंढ़ने की कश्मकश थी। लेकिन शायद आज वो लड़का मेट्रो में नहीं था। ऐसा लग रहा था। कि शायद वो लड़का गायब ही हो गया है।
...दिन बीतते गए, रागिनी के इंतजार की इन्तेहां हो हो चुकी थी। और मानो ऐसा लग रहा था। कि जैसे उसकी चंचल सी ज़िन्दगी कहीं थम सी गई है। कहीं रागिनी की आँखों को, उस लड़के की आदत तो नहीं पड़ गई थी। समझना थोड़ा मुश्किल सा था। ...और उस लड़के ने फिर कभी भी उस मेट्रो में सफर नहीं किया। शायद उस लड़के का मुकाम पूरा हो चुका था। आज इस बात को पूरा एक महीना बीत चुका था। और रागिनी की ज़िन्दगी थमी हुई सी चल रही थी। शायद उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा था। कि कहीं मैं गलत तो नहीं। रागिनी रोज सुबह कॉलेज जाती और फिर घर वापस.., ऐसे ही सब चल रहा था। एक दिन रागिनी कॉलेज पहुंची तो उसने देखा कि उसके कॉलेज में अगले महीने एक Exhibition होने वाला है। जो कॉलेज के माहौल को और भी रोचक बनाने वाला था। ...और काफी सोच विचार के बाद उसने भी निर्णय लिया कि वो भी उस इवेंट में आ रही है। ये जानकर उसके सभी दोस्त बेहद खुश थे। रागिनी MBA फर्स्ट ईयर की छात्रा थी। और अभी कॉलेज में उसे सिर्फ 2 महीने ही हुए थे। वह अभी कॉलेज के माहौल में धीरे धीरे घुल रही थी। कई चीजों से वह अनजान भी थी। और धीरे धीरे यूँही दिन निकलते गए। और आखिरकार वो दिन भी आ गया जब कॉलेज में Exhibition होने वाला था। ...रागिनी के कुछ फ्रेंड्स बोले- रागिनी तुझे याद है। न? कल टाइम पर आ जाना।
रागिनी सोच में पड़ गई। क्यों की वो उस इवेंट के बारे में भूल गई थी। फिर दोस्तों के याद दिलाने पर उसको याद आया कि कॉलेज में कल इवेंट है।

*Exhibition वाला दिन....

आज सुबह से ही कॉलेज में तैयारियां चल रहीथी। क्यों की कॉलेज में होने वाले इस इवेंट में काफी लोग अपने टैलेंट को सबके सामने रखने वाले थे। यह इवेंट कॉलेज के डिपार्टमेंट ऑफ़ आर्ट एंड डिज़ाइन, के द्वारा Organize हो रहा था। और रागिनी को तो ये भी पता नहीं था। कि उसके कॉलेज में ये डिपार्टमेंट भी है। यह इवेंट शाम के 5 बजे से शुरू होने वाला था। जिसमे कुछ ही वक़्त वाकी था। सभी लोग वहां पर मौजूद थे। और कुछ लोग आते जा रहे थे। रागिनी भी अभी, अपने दोस्तों के साथ Exhibition के बाहर व्यस्त थी। और अंदर की ओर आती जा रहीथी। ...और समय के साथ Exhibition भी शुरू हो गया था। उस Exhibition में एक से बढ़कर एक कलाकारों ने हिस्सा लिया था। और सबका टैलेंट उनकी प्रस्तुति में दिख भी रहा था। मगर उस Exhibition सबकी नज़रें, सबकी नज़रें एक स्केचिंग में लगी हुई थी। और सबका यही कहना था। यह किसके द्वारा बनाया गया है। जिसने सारी ख़ूबसूरती सिर्फ इस एक स्केचिंग में डाल दी। ...रागिनी भी अंदर आ चुकी थी। और वो धीरे-धीरे Exhibition की ख़ूबसूरती को निहार रही थी। और इसी प्रकार वो उस ख़ूबसूरती के पास भी पहुँच गई। जहाँ उसका जाना बेहद जरूरी था। और जैसे रागिनी ने उस स्केचिंग को देखा तो मानो जैसे रागिनी के होश ही उड़ गए। और एक पल के लिए वो हैरत में पड़ गई। और बस ये जानने के लिए पागल सी हो गई। इसको किसने बनाया है। क्यों कि उसने कभी अपनी स्केच बनवाई ही नहीं थी। और वह ये जानने के लिए पागल हो रही थी। वो कौन हो सकता है। जिसने मेरी तस्वीर को इतना खूबसूरती से तराशा है।
अब कुछ ही देर में उस Exhibition उस नाम को पुरूस्कार मिलने वाला था। जो उस पुरुस्कार का असली हकदार था। जिसे जानने के लिए, वहां उपस्थित सभी लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। विजेता का नाम घोसित किया जाने वाला था। उसके पहले उस स्केच के बारे में बोला जा रहा था। और जो उस Exhibition के जज थे। वो कुछ अश्मंजश में थे। क्यों कि जो विजेता ने पुरुष्कार जीता था। उसके उपर कहीं भी बनाने वाले का नाम नहीं लिखा था । उस पर सिर्फ A-Initial लिखा था। जिससे बनाने वाले को पहचनना बेहद मुश्किल था। ...Exhibition organizers के काफी मशक्कत के बाद जैसे तैसे पता चला कि वो स्केच किसी आरव नाम के शख्स ने बनाया है। जो कि उसी कॉलेज के आर्ट डिपाटमेंट का छात्र है। मगर इन सब ख़बरों से रागिनी अनजान थी। और उसे सिर्फ इस बात की उत्सुकता थी कि उस स्केच को बनाने वाला कौन है।
...और आखिर कर वो लम्हा आ ही गया जिसका सबको बेताबी से इंतजार था। विशिष्ठ रूप से रागिनी को। जैसे ही पहले विजेता को स्टेज पर बुलाया जाने वाला था। तो पहले उसके द्वारा बनाये गए। स्केच के बारे में चर्चा हुई। तब रागिनी को समझ आया कि जिस स्केच में उसकी तस्वीर बनी है। वही स्केच पुरूस्कार के लिए चुना गया है। जिसे सुनकर वह और में उत्सुक हो गई। और विजेता को जानने के लिए एक अजब सी चाह उसके चेहरे में दिख रही थी। तभी अचानक रागिनी के मोबाइल पर उसकी माँ का फोन आया, जो कि बीमार थीं जिसमे वह व्यस्त हो गई। चूँकि वहां पर नेटवर्क प्रॉब्लम ज्यादा था जिसके कारण वह बात करते करते इवेंट से बाहर आ गई। ...इवेंट अपनी गति से चल रहा था। और इसी बीच विजेता को स्टेज पर बुलाया गया। मगर रागिनी कि बेताबी और उलझन रागिनी की बातों में साफ़ दिखाई दे रही थी। जैसे ही वो बात करके अंदर पहुंची तो वो शख्स वहां से बाहर की ओर जा चुका था। और रागिनी उसे देख नहीं पाई। लेकिन रागिनी के कदम कहाँ रुकने वाले थे। इतनी बेताबी और ख़ुशी कि शब्दों में बयाँ करना मुश्किल था। इस अजीब झट-पटाहट थी रागिनी के मन में उस Mr. A को देखने की और आखिरकार रागिनी उस सख्स के पीछे-पीछे पहुँच ही गई। उसकी धड़कने इतनी तेज थी। कि उनकी आवाज साफ सुनाई दे रही थी। ...रागिनी ने उस सख्स को आवाज़ लगाई,

...Hello Mr. A who are you? How dare to draw my sketch.


...शायद अनजान सा गुस्सा और वेताबी उसकी आवाज में झलक रहा था। Mr. A जैसे ही उसे देखने के लिए पीछे की ओर मुड़ा तो उसे देखते ही रागिनी के होश उड़ गए। लफ्ज़ खामोश हो गए, धड़कने मानो कुछ देर के लिए थम सी गई हों। रागिनी की वेताबी बहुत कुछ कहना चाहती थी। पर कह नहीं पा रहीथी। और ये Mr. A कोई और नहीं वल्कि उसके ही कॉलेज के आर्ट डेपार्टमेंट में पढ़ने वाला आरव था। और ये वही आरव था। जो रागिनी के साथ इत्तेफाक से मेट्रो में सफर करता था। और रागिनी को देखा करता था। ...रागिनी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसने बिन कुछ कहे आरव में एक थप्पड़ मार दिया और फिर प्यार से उसको गले लगाकर रोने लगी।..

आरव ने अपने प्यार का इज़हार किया। और उसने रागिनी को बताया की वो एक मास्टरपीस स्केच बनाना चाहता था। और उसने ये भी कहा की रागिनी को पहली नज़र में देखने के बाद ही उसे लगा की उसकी तलाश पूरी हो गयी है..और उसने ये भी बताया की रागिनी की एक तस्वीर उसके घर पर लगी है। ...आरव ने रागिनी से पूछा क्या तुम वो तस्वीर देखना चाहोगी?
....पर रागिनी शरमाई और आरव के सामने एक शर्त रख दी। ....ये शर्त क्या थी? ...रागिनी ने मुस्कुरा के आरव से कहा है। मैं यह तस्वीर जरूर देखना चाहूंगी पर। तुमसे शादी करने के बाद।


" इस तरह मेट्रो के उस सफर ने उन दोनों का तआरुफ़ करवाया और वो हमेशा के लिए हमसफ़र बन गए।"



(लेखक- अमोल | अतुल)